“राधेय: विधि-वंचित वीर की अमर कहानी” महाभारत के सर्वाधिक तेजस्वी और त्रासद महानायक कर्ण के जीवन का एक महाकाव्यात्मक आख्यान है। सूर्यपुत्र तथा कुंती के ज्येष्ठ पुत्र होने के बावजूद, जन्म के साथ ही परित्यक्त कर्ण का पालन-पोषण सूत अधिरथ और राधा ने किया, जिससे वे ‘राधेय’ कहलाए। नैसर्गिक कवच-कुंडल से युक्त कर्ण ने आजीवन सामाजिक उपेक्षा और कुल-हीनता के दंश सहे, किंतु अपने अदम्य साहस, अतुलनीय शौर्य और असाधारण दानवीरता से उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई।
गुरु परशुराम से शस्त्र-शिक्षा और शाप, दुर्योधन से अटूट मित्रता (जो उन्हें कई बार धर्म-संकट में डालती), द्यूत-पर्व में उनकी विवादास्पद भूमिका, युद्ध-पूर्व माता कुंती द्वारा सत्य का उद्घाटन और इंद्र द्वारा कवच-कुंडल का छलपूर्वक हरण उनके जीवन के निर्णायक मोड़ थे।
कुरुक्षेत्र महासमर में अपने अद्भुत पराक्रम और सेनापतित्व से उन्होंने पांडव-सेना में त्राहि मचा दी। अर्जुन के साथ उनका अंतिम, महाप्रलयंकारी द्वंद्व और शापों तथा विधि के विधान के चलते उनकी वीरगति, महाभारत की सबसे मार्मिक घटनाओं में से एक है। मृत्यु उपरांत उनके वास्तविक जन्म का सत्य सम्पूर्ण विश्व के समक्ष प्रकट होता है, जिससे पांडवों में घोर पश्चाताप उत्पन्न होता है। अंततः, स्वर्ग में उन्हें अपने यथोचित दिव्य स्थान और सम्मान की प्राप्ति होती है। यह गाथा कर्ण के अनवरत संघर्ष, उनकी अटूट निष्ठा, उनके अतुल्य त्याग और एक विधि-वंचित वीर की अमर कीर्ति का चित्रण है।
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