प्रस्तावना:
महाभारत के महान गुरु द्रोणाचार्य को भारतीय शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। वे केवल एक शिक्षक ही नहीं, बल्कि एक रणनीतिकार और नीति-निर्माता भी थे। लक्ष्मी जायसवाल द्वारा डॉ. संदेशा भावसार के निर्देशन में लिखे गए लघु शोध – प्रबंध “एक और द्रोणाचार्य: एक मूल्यांकन” ने द्रोणाचार्य के व्यक्तित्व, शिक्षण पद्धति और नैतिकता पर गहन विचार किया है। लेकिन क्या आधुनिक शिक्षकों को द्रोणाचार्य जैसी विशेषताएँ अपनानी चाहिए?
द्रोणाचार्य की शिक्षण पद्धति:
- कठोर अनुशासन: द्रोणाचार्य अपने शिष्यों से पूर्ण समर्पण की अपेक्षा करते थे।
- व्यक्तिगत प्रतिभा को निखारना: उन्होंने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया।
- नैतिक दुविधाएँ: एकलव्य प्रकरण और अश्वत्थामा को लेकर उनकी नीतियाँ आज भी बहस का विषय हैं।
आधुनिक शिक्षा में द्रोणाचार्य के गुण कितने प्रासंगिक?
अनुशासन: शिक्षकों को आज भी छात्रों में अनुशासन और प्रतिबद्धता विकसित करनी चाहिए।
प्रतिभा को पहचानना: हर छात्र की क्षमता को समझना और उसे निखारना आवश्यक है।
पक्षपात: शिक्षा में किसी भी प्रकार का भेदभाव उचित नहीं।
निष्कर्ष:
द्रोणाचार्य का चरित्र हमें सिखाता है कि एक शिक्षक को अनुशासित, निष्ठावान और मार्गदर्शक होना चाहिए, लेकिन उसे निष्पक्षता और नैतिक मूल्यों को भी बनाए रखना चाहिए। आज के शिक्षकों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए, लेकिन उनके पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से बचना चाहिए।
यह लघु शोध प्रबंध एक और द्रोणाचार्य : एक मूल्यांकन, डॉ.संदेशा भावसार के निर्देशन में तैयार किया गया है। उनके बहुमूल्य मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के बिना यह कार्य संभव नहीं था। “इस रचना की संकल्पना से लेकर इसे पूर्ण करने तक, आदरणीय डॉ. संदेशा भावसार का मार्गदर्शन मेरे लिए पथप्रदर्शक रहा। उनके सटीक सुझावों, शोधपरक दृष्टिकोण और विद्वत्तापूर्ण निर्देशन ने इसे एक सार्थक रूप दिया। मैं उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करती हूँ।
गुरु-वंदिता में अर्पित
✒ लक्ष्मी जायसवाल
Nice